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Hanuman Chalisa By Gulshan Kumar
॥दोहा॥
श्रीगुरु चरन सरोज रज निज मनु मुकुरु सुधारि ।
बरनउँ रघुबर बिमल जसु जो दायकु फल चारि ॥बुद्धिहीन तनु जानिके सुमिरौं पवन-कुमार ।
बल बुधि बिद्या देहु मोहिं हरहु कलेस बिकार ॥॥चौपाई॥जय हनुमान ज्ञान गुन सागर ।
जय कपीस तिहुँ लोक उजागर ॥१॥राम दूत अतुलित बल धामा ।
अञ्जनि-पुत्र पवनसुत नामा ॥२॥महाबीर बिक्रम बजरङ्गी ।
कुमति निवार सुमति के सङ्गी ॥३॥कञ्चन बरन बिराज सुबेसा ।
कानन कुण्डल कुञ्चित केसा ॥४॥
हाथ बज्र औ ध्वजा बिराजै ।
काँधे मूँज जनेउ साजै ॥५॥सङ्कर सुवन केसरीनन्दन ।
तेज प्रताप महा जग बन्दन ॥६॥बिद्यावान गुनी अति चातुर ।
राम काज करिबे को आतुर ॥७॥प्रभु चरित्र सुनिबे को रसिया ।
राम लखन सीता मन बसिया ॥८॥सूक्ष्म रूप धरि सियहिं दिखावा ।
बिकट रूप धरि लङ्क जरावा ॥९॥भीम रूप धरि असुर सँहारे ।
रामचन्द्र के काज सँवारे ॥१०॥लाय सञ्जीवन लखन जियाये ।
श्रीरघुबीर हरषि उर लाये ॥११॥रघुपति कीह्नी बहुत बड़ाई ।
तुम मम प्रिय भरतहि सम भाई ॥१२॥सहस बदन तुह्मारो जस गावैं ।
अस कहि श्रीपति कण्ठ लगावैं ॥१३॥सनकादिक ब्रह्मादि मुनीसा ।
नारद सारद सहित अहीसा ॥१४॥जम कुबेर दिगपाल जहाँ ते ।
कबि कोबिद कहि सके कहाँ ते ॥१५॥तुम उपकार सुग्रीवहिं कीह्ना ।
राम मिलाय राज पद दीह्ना ॥१६॥तुह्मरो मन्त्र बिभीषन माना ।
लङ्केस्वर भए सब जग जाना ॥१७॥जुग सहस्र जोजन पर भानु ।
लील्यो ताहि मधुर फल जानू ॥१८॥प्रभु मुद्रिका मेलि मुख माहीं ।
जलधि लाँघि गये अचरज नाहीं ॥१९॥दुर्गम काज जगत के जेते ।
सुगम अनुग्रह तुह्मरे तेते ॥२०॥राम दुआरे तुम रखवारे ।
होत न आज्ञा बिनु पैसारे ॥२१॥सब सुख लहै तुह्मारी सरना ।
तुम रच्छक काहू को डर ना ॥२२॥आपन तेज सह्मारो आपै ।
तीनों लोक हाँक तें काँपै ॥२३॥भूत पिसाच निकट नहिं आवै ।
महाबीर जब नाम सुनावै ॥२४॥नासै रोग हरै सब पीरा ।
जपत निरन्तर हनुमत बीरा ॥२५॥सङ्कट तें हनुमान छुड़ावै ।
मन क्रम बचन ध्यान जो लावै ॥२६॥सब पर राम तपस्वी राजा ।
तिन के काज सकल तुम साजा ॥२७॥और मनोरथ जो कोई लावै ।
सोई अमित जीवन फल पावै ॥२८॥चारों जुग परताप तुह्मारा ।
है परसिद्ध जगत उजियारा ॥२९॥साधु सन्त के तुम रखवारे ।
असुर निकन्दन राम दुलारे ॥३०॥अष्टसिद्धि नौ निधि के दाता ।
अस बर दीन जानकी माता ॥३१॥राम रसायन तुह्मरे पासा ।
सदा रहो रघुपति के दासा ॥३२॥तुह्मरे भजन राम को पावै ।
जनम जनम के दुख बिसरावै ॥३३॥अन्त काल रघुबर पुर जाई ।
जहाँ जन्म हरिभक्त कहाई ॥३४॥और देवता चित्त न धरई ।
हनुमत सेइ सर्ब सुख करई ॥३५॥सङ्कट कटै मिटै सब पीरा ।
जो सुमिरै हनुमत बलबीरा ॥३६॥जय जय जय हनुमान गोसाईं ।
कृपा करहु गुरुदेव की नाईं ॥३७॥जो सत बार पाठ कर कोई ।
छूटहि बन्दि महा सुख होई ॥३८॥जो यह पढ़ै हनुमान चालीसा ।
होय सिद्धि साखी गौरीसा ॥३९॥तुलसीदास सदा हरि चेरा ।
कीजै नाथ हृदय महँ डेरा ॥४०॥॥दोहा॥पवनतनय सङ्कट हरन मङ्गल मूरति रूप ।
राम लखन सीता सहित हृदय बसहु सुर भूप ॥- This topic was modified 3 years, 9 months ago by Anshul Sharma.
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